निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
कवयित्री यहां हमसे हमारे जीवन के संपूर्ण अस्तित्व की अहंकार रूपी एक-एक इकाई को ईश्वर से एकाकार होने हेतु गलाने का आह्वान करती हैं। जिस प्रकार कि कोई विद्यार्थी अपनी आने वाली परीक्षा में सफल होने के लिए अपना शरीर परिश्रम से गला डालता है और उसकी यह मेहनत प्रकाश के बङे पुंज की तरह बाहर आकर उसे फल प्रदान करती है। यहां भी कवयित्री के कहने का भाव ठीक वैसा ही है। कवयित्री कहती हैं कि हम अपने जीवन के अस्तित्व के एक-एक अणु को गलाकर अपने आप में समुद्र के समान अपार प्रकाश उत्पन्न करें जो कि ईश्वर का मार्ग आलोकित करे और हम उनमें एकाकार हो पायें।